Bach Baras 2024: गोवत्स द्वादशी क्यों मनाते हैं, क्या कथा है?

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Bach Baras Katha

Bach Baras 2024: धार्मिक मान्यतानुसार प्रतिवर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को अन्य नाम बच्छ दुआ, वसु द्वादशी या बछ बारस के नाम से भी जाना जाता है। बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत पुत्र की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है, जो कि भारत के अधिकांश हिस्सों में कार्तिक कृष्ण द्वादशी को मनाते हैं। इस वर्ष गोवत्स द्वादशी व्रत 28 नवंबर 2024, दिन सोमवार को पड़ रहा है।
  • द्वादशी तिथि प्रारम्भ- 28 अक्टूबर 2024 को प्रात: 07:50 बजे।
  • द्वादशी तिथि समाप्त- 29 अक्टूबर 2024 को प्रात: 10:31 बजे।
  • प्रदोषकाल गोवत्स द्वादशी मुहूर्त- शाम को 05:39 से रात्रि 08:13 बजे तक।
  • बछ बारस की कथा- Bach Baras Katha:

    Bach Baras Story: बछ बारस की प्रचलित कथा के अनुसार बहुत समय पहले की बात है एक गांव में एक साहूकार अपने सात बेटे और पोतों के साथ रहता था। उस साहूकार ने गांव में एक तालाब बनवाया था लेकिन कई सालों तक वो तालाब नहीं भरा था। तालाब नहीं भरने का कारण पूछने के लिए उसने पंडित को बुलाया।

    पंडित ने कहा कि इसमें पानी तभी भरेगा जब तुम या तो अपने बड़े बेटे या अपने बड़े पोते की बलि दोगे। तब साहूकार ने अपने बड़ी बहू को तो पीहर भेज दिया और पीछे से अपने बड़े पोते की बलि दे दी। इतने में गरजते-बरसते बादल आए और तालाब पूरा भर गया।

    इसके बाद बछ बारस आई और सभी ने कहा कि अपना तालाब पूरा भर गया है इसकी पूजा करने चलो। साहूकार अपने परिवार के साथ तालाब की पूजा करने गया। वह दासी से बोल गया था गेहुंला को पका लेना। साहूकार के कहें अनुसार गेहुंला से तात्पर्य गेहूं के धान से था। दासी समझ नहीं पाई।

    दरअसल, गेहुंला गाय के बछड़े का भी नाम था। उसने गेहुंला को ही पका लिया। बड़े बेटे की पत्नी भी पीहर से तालाब पूजने आ गई थी। तालाब पूजने के बाद वह अपने बच्चों से प्यार करने लगी तभी उसने बड़े बेटे के बारे में पूछा।

    तभी तालाब में से मिट्टी में लिपटा हुआ उसका बड़ा बेटा निकला और बोला, मां मुझे भी तो प्यार करो। तब सास-बहू एक-दूसरे को देखने लगी। सास ने बहू को बलि देने वाली सारी बात बता दी। फिर सास ने कहा, बछ बारस माता ने हमारी लाज रख ली और हमारा बच्चा वापस दे दिया। तालाब की पूजा करने के बाद जब वह वापस घर लौटीं तो देखा, बछड़ा नहीं था। साहूकार ने दासी से पूछा, बछड़ा कहां है? तो दासी ने कहा कि आपने ही तो उसे पकाने को कहा था।

    साहूकार ने कहा, एक पाप तो अभी उतरा ही है, तुमने दूसरा पाप कर दिया। साहूकार ने पका हुआ बछड़ा मिट्टी में दबा दिया। शाम को गाय वापस लौटी तो वह अपने बछड़े को ढूंढने लगी और फिर मिट्टी खोदने लगी। तभी मिट्टी में से बछड़ा निकल गया। साहूकार को पता चला तो वह भी बछड़े को देखने गया। उसने देखा कि बछड़ा गाय का दूध पीने में व्यस्त था। तब साहूकार ने पूरे गांव में यह बात फैलाई कि हर बेटे की मां को बछ बारस का व्रत करना चाहिए। हे बछबारस माता, जैसा साहूकार की बहू को दिया वैसा हमें भी देना। कहानी कहते-सुनते ही सभी की मनोकामना पूर्ण करना।

    कहीं-कहीं मतांतर से कथा में यह जिक्र भी मिलता है कि गेहूंला और मूंगला दो बछड़े थे जिन्हें दासी ने काटकर पका दिया था इसलिए इस दिन गेहूं, मूंग और चाकू तीनों का प्रयोग वर्जित है।