लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती : 'ज्वाला थी उनकी आंखों में, था ओजस उनके प्रण में'

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- प्रथमेश व्यास

आज देश की व्यथा जानकर मन ही मन घबराता हूं

जात पात के झगड़ों से मैं सहम-सहम सा जाता हूँ

चारों ओर अराजकता के बादल छाते हैं दिखते

सत्ताधारी लोकतंत्र का गला दबाते हैं दिखते।

वर्तमान में राष्ट्रप्रेम की बातें कोई नहीं करता,

मक्कारी और भ्रष्टाचारी से भी कोई नहीं डरता

भारत की अखंडता बचती, ये न खेल हुआ होता

गद्दी पर जो लोपुरुष सरदार पटेल हुआ होता।

अंग्रेजों ने घुटने टेके जिनकी हिम्मत के आगे,

जिनके साहस से आजादी पाने को सब थे जागे

पैदल यात्रा कर के जोड़ा रियासती रजवाड़ों को,

खेत भूमि वापस दिलवाई कितने ही हकदारों को।

खेडा और बारडोली का सत्याग्रह संपन्न किया,

नेहरु और गांधी संग मिलकर नई सोच का सृजन किया

लोभ नहीं था कुर्सी का ना स्वार्थ ही था उनके मन में,

ज्वाला थी उनकी आंखों में, था ओजस उनके प्रण में।

शिल्पकार थे उस भारत के जिसपर तुम इतराते हो,

फिर क्यूं उन्हें याद करने में इतना तुम संकुचाते हो,

देह चली जाती फिर भी बलिदान रह जाते हैं

चरणों में उनके वंदन है जो सरदार कहलाते हैं।

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