अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में डॉ. बी.आर. अंबेडकर पर राष्ट्रीय सम्मेलन का किया उद्घाटन

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सोनीपत (हरियाणा), 13 अप्रैल (आईएएनएस)। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा है कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर महज दूसरे देशों से कुछ विचार लेकर संविधान का प्रारूप तैयार करने वाले एक व्यक्ति मात्र नहीं थे, बल्कि वह संविधान में कुछ ऐसे दृष्टिकोण और समझ लाना चाहते थे, जो आज संविधान में व्याप्त हैं और इसकी कार्यप्रणाली को विचारधाराओं से अलग बनाते हैं तथा समानता, न्याय, बंधुत्व और शासन पर आधारित हैं।

उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियों के बावजूद, ग्रामर ऑफ एनार्की (असंवैधानिक तरीके) भी प्रचलन में हैं।

ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में आयोजित “डॉ. बी.आर. अंबेडकर की विरासत: अधिकारों, न्याय और संवैधानिक शासन को आगे बढ़ाना” विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में अटॉर्नी जनरल ने कहा, “समानता और गैर-भेदभाव की दिशा में सभी संघर्ष, समतावादी समाज की आकांक्षाओं को संविधान के ढांचे के भीतर ही रहना होगा क्योंकि यह सब सुनिश्चित करने के लिए यह सबसे शक्तिशाली दस्तावेज है - आस्था और नुस्खे से परे।”

उन्होंने कहा, “शैक्षणिक संस्थान सरकारी संस्थानों, राजनीतिक दलों और सामाजिक जागरूकता के बीच एक बेहतरीन पुल बन सकते हैं। हमें आगे एक लंबी यात्रा करनी है, और हमें समानता के लिए अधिक प्रोत्साहन तथा जुड़ाव की आवश्यकता है। डॉ. अंबेडकर के पास दर्शन, धर्म और अर्थशास्त्र की अपनी समझ के साथ एक असाधारण दृष्टि थी, जिससे एक सामाजिक व्यवस्था तक पहुंचा जा सके, जहां हम में से प्रत्येक को आर्थिक पुनर्व्यवस्था से परे समान दर्जा और समान सम्मान मिलेगा।”

डॉ. बी.आर. अंबेडकर की 134वीं जयंती के उपलक्ष्य में ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी ने डॉ. अंबेडकर की चिरस्थायी विरासत पर चर्चा के लिए तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया है। यह सम्मेलन 12-14 अप्रैल को विश्वविद्यालय में प्रमुख शिक्षाविदों, कानून विशेषज्ञों, न्यायविदों, न्यायाधीशों, प्रख्यात वकीलों और राष्ट्रीय नेताओं की उपस्थिति में आयोजित किया जा रहा है।

राष्ट्रीय सम्मेलन को हरियाणा के अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. राजा शेखर वुंडरू और नेशनल काउंसिल ऑफ वुमन लीडर्स की राष्ट्रीय संयोजक मंजुला प्रदीप सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी संबोधित किया।

ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति प्रो. (डॉ.) सी. राज कुमार ने कहा: "डॉ. बी.आर. अंबेडकर भारत के सबसे प्रखर विद्वानों और 20वीं सदी के क्रांतिकारी नेताओं में से एक हैं। अधिकारों और न्यायपूर्ण समाज, विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए एक दूरदर्शी वकील, उनके विचारों और व्यवहार ने भारतीय संविधान सहित भारत की कुछ सबसे महत्वपूर्ण और आधारभूत संरचनाओं को संभव बनाया।

"डॉ. बी.आर. अंबेडकर दुनिया भर में न्याय और मुक्ति के लिए आंदोलनों को प्रेरित करते रहे हैं। उनकी स्थायी विरासत की सराहना करने के लिए हम कुछ चर्चाओं को संभव बनाते हुए उनका समर्थन और मेजबानी करना चाहते हैं - उनके जीवन को हमारी शिक्षाओं से और उनकी उल्लेखनीय विद्वता को हमारी मौजूदा समय के मसलों से जीवंत करते हुए। यह राष्ट्रीय सम्मेलन एक अग्रणी बौद्धिक चर्चा साबित होगा, जो आधुनिक भारत में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की समकालीन समझ को प्रासंगिक बनाएगा।"

जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल की कार्यकारी डीन, प्रो. (डॉ.) दीपिका जैन ने कहा: "राष्ट्रीय सम्मेलन में तीन दिन होने वाली चर्चाएं, पैनल और मुख्य भाषण हमें डॉ. बी.आर. अंबेडकर की विरासत को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे। यह बताता है कि कैसे भारतीय संविधान एक स्थायी दस्तावेज रहा है जिसने भारत को अपनी लोकतांत्रिक जड़ों के प्रति प्रतिबद्ध होने और व्यक्ति के अधिकारों को सुनिश्चित करने में मदद की है। सम्मेलन के दौरान विभिन्न सत्रों में इन विषयों पर गहन चर्चा होगी, जिसमें भारत के राजनीतिक विचारों के साथ-साथ आर्थिक विचारों को आकार देने में डॉ. अंबेडकर की दूरदर्शिता पर एक डिबेट भी शामिल है।"

कई सत्र प्रासंगिक मुद्दों पर केंद्रित हैं, जैसे: डॉ. अंबेडकर पर असहमति के संवाद, समाजशास्त्र और इतर का निर्माण; डॉ. अंबेडकर और वैश्विक मानवाधिकार; डॉ. अंबेडकर और महिलाओं का प्रश्न; आरक्षण और इसका भविष्य; धार्मिक बहुलवाद और डॉ. अंबेडकर द्वारा बौद्ध धर्म को अपनाना; दलित नारीवादी सिद्धांत: आलोचना, शक्ति और नारीवादी विचार में क्रांतिकारी बदलाव; अंबेडकर की मुक्ति की अवधारणा में कानूनी और नैतिक तथा समसामयिक प्रश्न; आरक्षण और उसका भविष्य; धार्मिक विविधता और डॉ. अंबेडकर का बौद्ध धर्म अपनाना; दलित नारीवादी सिद्धांत: आलोचना, शक्ति और नारीवादी विचारों में क्रांतिकारी बदलाव; अंबेडकर की मुक्ति की अवधारणा में वैधानिकता तथा नैतिकता; और प्रासंगिक प्रश्न जैसे, संवैधानिक नैतिकता तथा समलैंगिक संबंधों को अपराधमुक्त करना: एक महत्वपूर्ण चर्चा; डिजिटल इंडिया और जाति का प्रश्न; डॉ. अंबेडकर की विरासत को आगे बढ़ाने में मीडिया की भूमिका; और अन्य।

प्रमुख और प्रतिष्ठित प्रतिभागियों में मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश डॉ. वुंडरू, राज्यसभा सदस्य न्यायमूर्ति के. चंद्रू, डॉ. सस्मित पात्रा, प्रदीप, फेम फर्स्ट फाउंडेशन की संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी एंजेलिका अरिबम, नेशनल कैंपेन ऑन दलित ह्यूमन राइट्स की महासचिव बीना पल्लिकल, नाजरिया की सह-संस्थापक रितुपर्णा बोरा, अखिल भारतीय दलित महिला अधिकार मंच-एनसीडीएचआर की महासचिव अबिरामी जोथीश्वरन, अधिवक्ता और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की सह-संस्थापक अपार गुप्ता, दलित वुमन फाइट की संस्थापक डॉ. रिया सिंह, क्रिमिनल जस्टिस एंड पुलिस अकाउंटेबिलिटी प्रोजेक्ट की सह-संस्थापक निकिता सोनावने, मूकनायक की संस्थापक मीना कोटवाल, द न्यूज मिनट के कार्यकारी संपादक सुदीप्तो मंडल के अलावा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नालसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हमदर्द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च, हैदराबाद विश्वविद्यालय, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य जैसे प्रमुख विश्वविद्यालयों के प्रसिद्ध शिक्षाविद् शामिल हैं।

--आईएएनएस

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