काशी में क्यों भगवान शिव विश्वनाथ कहलाते हैं? जानें मंदिर का इतिहास और महत्व

सावन का महीना देवों के देव महादेव को बेहद प्रिय है। इस महीने में भगवान शिव और जगत की देवी मां पार्वती की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही सावन सोमवार पर व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक पर महादेव की कृपा बरसती है। विवाहित महिलाएं सुख और सौभाग्य में वृद्धि के लिए सोमवार के दिन व्रत रखती हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि देवों के देव महादेव क्यों विश्वनाथ कहलाते हैं? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
विश्वनाथ मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित है। इसे बाबा की नगरी यानी भोले की नगरी भी कहा जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर की प्रसिद्धि दुनियाभर में है। यह मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है। भोले की नगरी का कोतवाल काल भैरव देव हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए भोले की नगरी आते हैं। श्रद्धालु गंगा नदी में डुबकी लगाकर बाबा के दर्शन करते हैं। इस शुभ अवसर पर साधक गंगाजल से बाबा का अभिषेक भी करते हैं। जलाभिषेक से देवों के देव महादेव जल्द प्रसन्न होते हैं।
इतिहासकारों की मानें तो वर्तमान समय में उपस्थित काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण सन 1780 में इंदौर की स्वर्गीय महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने कराया था। वहीं, काशी विश्वनाथ मंदिर के दो गुंबदों को सोने से कवर पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह द्वारा कराया गया था। हालांकि, तीसरा गुंबद अभी भी खुला है। बाबा की नगरी स्थित विश्वनाथ शिवलिंग का इतिहास सदियों पुराना है।
काशी विश्वनाथ मंदिर देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। यह मंदिर प्रयागराज में है। भगवान शिव को विश्वनाथ या विश्वेश्वर भी कहा जाता है। इसका आशय यह है कि देवों के देव महादेव ब्रह्मांड का शासक भी कहा जाता है। वहीं, यह मंदिर काशी में स्थित है। इसके लिए प्रयागराज स्थित मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है।
धार्मिक महत्वसनातन शास्त्रों में काशी का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। धार्मिक मत है कि गंगा नदी में स्नान कर महादेव के दर्शन करने से साधक द्वारा जन्म-जन्मांतर में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही महादेव की कृपा से सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। महादेव की पूजा करने से साधक को सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। काशी विश्वनाथ मंदिर में पांच समय आरती की जाती है।
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