अमेरिका-चीन में पदकों की बारिश, यहां ओलम्पिक का मानसून रूठा-रूठा
सीकर. पेरिस ओलम्पिक में अमेरिका व चीन के खिलाडि़यों ने पदकों की बारिश कर दी है। जबकि मानसून सीजन में भी भारत में पदकों की खुशी का सूखा है। हर बार ओलम्पिक के समापन पर नए रणनीति के तहत अगले ओलम्पिक में उतरने की योजना बनाई जाती है, लेकिन हमारे यहां के दावे-वादे योजनाओं से बाहर ही नहीं निकल पाते। पेरिस ओलम्पिक में छह पदकों की खुशी और गम के बीच भारतीय दल ने भी विदाई ले ली है। पेरिस ओलम्पिक में भी अमेरिका-चीन टॉप पर हैं। भारत की बात करें तो पिछले ओलम्पिक के मुकाबले रैंकिंग फिसली है। पेरिस ओलम्पिक में छह पदकों के साथ भारत 71 वें स्थान पर रहा।
पत्रिका टीम ने विभिन्न विषयों के एक्सपर्ट से बातचीत कर जानने की कोशिश कि आखिर में ओलम्पिक खेलों के जरिए भारत पर कब पदकों का मानसून आएगा। एक्सपर्ट का कहना है कि हमारे देश में अब भी क्रिकेट का सबसे ज्यादा माहौल है, दूसरे खेलों को ज्यादा तवज्जो नहीं मिल पा रही है।
इसलिए हम पदक जीतने में अब भी पीछे
1. चीन-अमेरिका में पांच साल के बच्चों का जेनेटिक टेस्ट: भारत के ओलम्पिक की पदक सूची में पीछे रहने की असली वजह यूथ का खेलों से कमजोर जुड़ाव है। एक्सपर्ट ने बताया कि चीन और अमेरिका सहित कई देशों में पांच साल के बच्चों का जेनेटिक टेस्ट कराया जाता है, इससे पता लग जाता है कि वह कौनसे खेल में बेहतर कर सकता है। जबकि हमारे यहां इस उम्र में स्कूल में दाखिले की बात ही होती है।
2. एकेडमी कम, स्कूल-कॉलेजों में खेल अनिवार्य नहीं
भारत में अभी भी शहरों से गांवों तक क्रिकेट की एकेडमी सबसे ज्यादा है। जबकि चीन-अमेरिका की बात करें तो यहां सभी खेलों को समानता से तवज्जो दी जाती है। कई खेल ऐसे है जिनकी संभाग व जिला स्तर पर एकेडमी तक नहीं है। वहीं चीन, अमेरिया व फिनलैण्ड सहित कई देशों में खेल अनिवार्य है और वहां नियमित खेलों का अभ्यास भी होता है। इधर, भारत के स्कूल व कॉलेजों में खेलों की कोई अनिवार्यता नहीं है। हालांकि पिछले दिनों पीएम मोदी ने ट्वीट किया था कि अब नई शिक्षा नीति में खेलों की अलग से पढ़ाई हो सकेगी, इसके बाद युवाओं में थोड़ी आस जगी है।
3. सरकारी के साथ निजी सेक्टर का फोकस: भारत में जहां ओलम्पिक की तैयारी का पूरा जिम्मा जहां सरकार पर ही है। वहीं अन्य देशों में निजी सेक्टर भी खिलाडि़यों की फौज तैयार करने में पूरा साथ निभा रहे है। जबकि यहां निजी सेक्टर का ज्यादा भरोसा क्रिकेट पर ही है।
4. पदक जीतने के बाद सुविधा, पहले संघर्ष: दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले हमारे यहां हालात पूरी तरह उलट है। केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों की ओर से पदक जीतने के बाद नगद पुरस्कार से लेकिन भूखंड, सरकारी नौकरी सहित अन्य सुविधाएं दी जाती है, लेकिन पदक जीतने से पहले ज्यादातर खिलाडि़यों को अपने दम पर संघर्ष के लिए छोड़ दिया जाता है। जबकि दुनिया के अन्य देशों में ओलम्पिक की तैयारी के दौरान खिलाडि़यों को ज्यादा सुविधाएं दी जाती है।
5. खेल संस्कृति का अभाव, संगठनों में सियासत: देश में खेल संस्कृति के कमजोर होने की वजह से भी देश में खिलाडि़यों की फौज तैयार नहीं हो पा रही है। देश के प्रमुख खेल संगठनों पर अब भी सियासत या नौकरशाहों का कब्जा है। इस वजह से हमारे यहां खेलों में पक्षपात सहित अन्य आरोपों की जमकर गूंज है। एक्सपर्ट का कहना है कि मजबूत खेल नीति के बिना यह संभव नहीं है।
अच्छी बात: आधी आबादी ने दी पूरी खुशियां
इस साल खेल बजट: 3,442.32 करोड़
पिछले साल के मुकाबले: 45 करोड़ ज्यादा
पेरिस ओलम्पिक में भारत ने पदक जीते: 6
इस साल के ओलम्पिक में भारत का स्थान: 71 वां
पिछले ओलम्पिक में भारत की रैकिंग: 48 वीं
पेरिस ओलम्पिक में चीन ने गोल्ड जीते: 39
अमेरिका ने गोल्ड जीते: 38
सबसे ज्यादा मेडल जीते: अमेरिका, 122
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