चीफ़ जस्टिस के घर पर प्रधानमंत्री के जाने को लेकर विवाद, जजों के लिए दिशानिर्देश क्या कहते हैं?
इसी सप्ताह भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के घर पर हुई गणपति पूजा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है.
11 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जिसमें वो मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के घर पर उनके परिवार के साथ गणपति पूजा में शामिल होते देखे जा सकते हैं.
देश के संविधान में उल्लेख किए गए लोकतंत्र के तीन स्तंभ- न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका की स्वतंत्रता को स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ज़रूरी माना गया है.
प्रधानमंत्री के पद पर बैठे हुए व्यक्ति के चीफ़ जस्टिस के घर पर जाने को लेकर विपक्ष ने न्यायपालिका की स्वायत्तता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाए.
जानेमाने वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने कहा कि "मैं चीफ़ जस्टिस का सम्मान करता हूं, लेकिन तस्वीरें देख कर मैं आश्चर्य में पड़ गया. ऊंचे पद पर बैठे लोगों को निजी कार्यक्रम के बारे में इस तरह सार्वजनिक तौर पर नहीं बताना चाहिए."
"पीएम को वहां जाने को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखानी चाहिए थी. मुद्दा व्यक्ति का नहीं है, बल्कि ये है कि इस तरह की तस्वीर से ग़लत संदेश जा सकता है. लोग संस्था के बारे में बात कर सकते हैं जो गैरज़रूरी है."
इस घटना से यह सवाल भी उठता है कि न्यायाधीशों को कैसा व्यवहार करना चाहिए और क्या उन्हें अपनी निष्पक्षता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए कुछ दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंसुप्रीम कोर्ट के वकील दुष्यंत दवे
तो, जस्टिस वेंकटचलैया के बनाए गए ये दिशानिर्देश क्या हैं? यह कब बना और इनके अंतर्गत कौन से मुद्दे आते हैं? आइए जानते हैं.
ये दिशानिर्देश या आचार संहिता 7 मई 1997 को लागू हुई.
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एम. एन. वेंकटचलैया की पहल पर 16 बिन्दुओं वाला एक दस्तावेज़ तैयार किया गया. इस दस्तावेज़ का शीर्षक 'न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन' रखा गया.
7 मई 1997 को सुप्रीम कोर्ट की एक बैठक में इस दस्तावेज़ को अपनाया गया.
इन दस्तावेज़ में वे दिशानिर्देश शामिल थे जिनका पालन न्यायपालिका में शामिल व्यक्ति को करना चाहिए, जिससे कि न्यायपालिका का स्वतंत्र अस्तित्व बरकरार रहे और आम आदमी की नज़र में उसकी स्वायत्तता बनी रहे.
न्यायपालिका के लिए क्या दिशानिर्देश हैं? Getty Images चीफ़ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़1. न्यायाधीशों के व्यवहार और आचरण से न्यायपालिका में विश्वास और पारदर्शिता मज़बूत होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे व्यक्तिगत या आधिकारिक तौर पर न्यायपालिका में विश्वास और पारदर्शिता को ख़तरा पैदा हो.
2. न्यायाधीश किसी कार्यालय, क्लब, सोसायटी या अन्य एसोसिएशन के लिए चुनाव नहीं लड़ेंगे.
3. न्यायाधीश को बार के किसी भी सदस्य, विशेषकर अपने ही न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले किसी भी सदस्य के साथ घनिष्ठता से बचना चाहिए.
4. न्यायाधीशों को अपने क़रीबी रिश्तेदारों को वकील के रूप में अपनी अदालतों में लंबित मामलों पर बहस करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए.
5. यदि न्यायाधीश के परिवार का कोई सदस्य वकील है, तो उन्हें उस घर में रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जहां न्यायाधीश रहते हैं या ऐसे सदस्य के पेशेवर काम के लिए घर का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
6. न्यायाधीश को अपने आचरण में निष्पक्षता का कड़ाई से पालन करना चाहिए.
7. न्यायाधीशों को अपने परिवार, क़रीबी रिश्तेदारों या दोस्तों से संबंधित मामलों की सुनवाई अपनी अदालत में नहीं करनी चाहिए.
8. न्यायाधीशों को सार्वजनिक चर्चा में भाग नहीं लेना चाहिए. साथ ही, किसी को ऐसे मामले में सार्वजनिक रूप से अपनी राय व्यक्त नहीं करनी चाहिए जो राजनीतिक हो, अदालत में लंबित हो या जिसमें अदालत को हस्तक्षेप करना पड़े.
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9. न्यायाधीशों के फ़ैसले स्पष्ट होने चाहिए. उन्हें मीडिया को इंटरव्यू नहीं देना चाहिए. यानी उन्हें इतना स्पष्ट होना चाहिए कि अलग से इंटरव्यू देने की ज़रूरत न पड़े.
10. न्यायाधीशों को अपने निकटतम परिवार के अलावा अन्य लोगों से उपहार नहीं लेना चाहिए और किसी तरह की रॉयल्टी स्वीकार नहीं करनी चाहिए.
11. न्यायाधीशों को उन कंपनियों के मामले नहीं उठाने चाहिए जिनमें उनके शेयर हों. न्यायाधीश उन मामलों में सुनवाई कर सकते हैं जिनमें उन्होंने इसका उद्देश्य बताया हो और किसी अन्य न्यायाधीश ने सुनवाई और फ़ैसले पर आपत्ति न जताई हो.
12. स्टॉक, शेयर आदि में न्यायाधीश किसी भी प्रकार की अटकलें नहीं लगाएंगे.
13. न्यायाधीशों को किसी भी व्यक्ति, संगठन और भागीदार के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यापार या व्यवहार नहीं करना चाहिए.
14. किसी भी उद्देश्य के लिए धन जुटाने की प्रक्रिया में न्यायाधीश किसी सदस्यता का अनुरोध नहीं करेंगे और न ही कोई सदस्यता स्वीकार करेंगे. साथ ही इसमें सक्रिय रूप से भाग भी नहीं लेंगे.
15. न्यायाधीशों को उनके कार्यालय से संबंधित कोई रियायत, आर्थिक लाभ, सुविधाएं या विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होंगे, जब तक कि स्पष्ट रूप से उल्लेख न किया गया हो.
16. प्रत्येक न्यायाधीश को यह ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें आम जनता देख रही है. इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी न्यायाधीश के किसी भी काम या चूक से उनके पद और इस पद के प्रति जनता के सम्मान में कोई कमी न आए.
इन दिशानिर्देशों को न्यायाधीशों के लिए एक प्रकार की आचार संहिता माना जाता है.
न्यायपालिका के स्वतंत्र अस्तित्व और स्वायत्तता बनाए रखने के लिए न्यायपालिका में शामिल हर एक व्यक्ति से इन दिशानिर्देशों का पालन करने की उम्मीद की जाती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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