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पैरालंपिक में भाग्यश्री जाधव: मेहनत और लगन से भाग्य बदलने की कहानी

X/MODI भाग्यश्री जाधव

पेरिस पैरालंपिक खेलों की शुरुआत 28 अगस्त से हो चुकी है.

ओपनिंग सेरेमनी में भारत की ओर से भाग्यश्री जाधव भी बतौर ध्वजवाहक रहीं.

महाराष्ट्र की रहने वालीं भाग्यश्री का सफ़र आसान नहीं रहा है.

अपने संघर्ष के बारे में भाग्यश्री ने कहा, ''मुश्किल हालात से ज़्यादा दुख मुझे मेरे लोगों ने पहुंचाया. जब लोग आपको लगातार नीचा महसूस कराते हैं तो आप सही मायनों में गरिमा और आत्मसम्मान की क़ीमत समझते हैं."

भाग्यश्री जाधव को ज़हर दे दिया गया था और इस कारण वो विकलांग हो गईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.

भाग्यश्री जाधव ने सभी बाधाओं को पार कर अपनी उपलब्धियों से देश का नाम रोशन किया.

भाग्यश्री जाधव ने बीबीसी से कहा, "हर स्तर पर चुनौती का सामना करने के बाद सफलता मिलना संतोषजनक है और इसे लेकर मुझे गर्व महसूस होता है."

Getty Images पेरिस पैरालंपिक में ध्वजवाहक के रूप में आगे की तरफ सुमित अंतिल, भाग्यश्री जाधव और टीम इंडिया भाग्यश्री जाधव कौन हैं?

महाराष्ट्र के नांदेड़ ज़िले के मुखेड़ तहसील के छोटे से गांव होनवादाज में 24 मई 1985 को भाग्यश्री का जन्म हुआ.

पिता माधवराव और मां पुष्पाबाई जाधव को किसान होने के कारण कई बार सूखे की मार भी झेलनी पड़ी.

माधवराव की मानसिक सेहत ठीक नहीं थी. इस कारण भाग्यश्री जाधव को चाचा आनंदराव जाधव ने पाला.

भाग्यश्री अपने परिवार की तीन पीढ़ियों में पैदा हुई इकलौती लड़की थीं. इस कारण प्यार भी ख़ूब मिला.

लेकिन परिवार को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनकी लाडली भाग्यश्री के सामने कठिनाइयां आने वाली हैं.

12वीं तक की पढ़ाई घर के पास से हुई. 2004 में 19 की उम्र में शादी हो गई.

Facebook महाराष्ट्र के नांदेड़ ज़िले के मुखेड़ तहसील के छोटे से गांव होनवादाज में भाग्यश्री जाधव का जन्म हुआ था भाग्यश्री के लिए कहां से सब बदला?

भाग्यश्री जाधव का वैवाहिक जीवन सही नहीं रहा.

भाग्यश्री के मुंहबोले भाई प्रकाश कांबले ने कहा, "भाग्यश्री को 2006 में ज़हर दिया गया. गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया. वो दो हफ़्ते कोमा में रहीं. हर किसी को डर था कि वो ज़िंदा नहीं बचेंगी.''

भाग्यश्री ने हार नहीं मानीं और वो कोमा से बाहर आ गईं. मगर ज़हर के कारण भाग्यश्री की कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया.

इससे भाग्यश्री का परिवार सदमे में था. मन में ये सवाल था कि बेटी की ज़िंदगी कैसे कटेगी?

दूसरी ओर भाग्यश्री का आरोप रहा कि ज़हर ससुर ने दिया था. हालांकि ये मामला कोर्ट में है और अभी ये आरोप साबित नहीं हो सका है.

भाग्यश्री गुज़ारे भत्ते के लिए भी कोर्ट में लड़ रही हैं.

भाग्यश्री की फिजियोथेरेपिस्ट शुंभागी पटेल ने कहा- उनकी विकलांगता को ठीक नहीं किया जा सकता.

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21 की उम्र में विकलांग होने की कड़वी सच्चाई भाग्यश्री को माननी पड़ी. मगर परिवार ने साथ दिया और वो हिम्मत नहीं हारीं.

भाग्यश्री ने डीएड की पढ़ाई के लिए अहमदपुर में दाख़िला लिया.

लेकिन मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं. भाग्यश्री को पालने वाले चाचा का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.

भाग्यश्री ने हार ना मानते हुए गांव छोड़ दिया. वो परिवार के लिए बोझ नहीं बनना चाहती थीं. भाग्यश्री बीए की पढ़ाई करने के लिए नांदेड़ स्थित हॉस्टल में रहने लगीं.

चुनौतियां यहां भी ख़त्म नहीं हुईं.

नेजल ग्लैंड में ट्यूमर के कारण भाग्यश्री को सांस लेने में परेशानी होने लगी. इसके लिए सर्जरी तो हो सकती थी, लेकिन ये जोख़िम भरा था.

भाग्यश्री की मुंबई के जेजे अस्पताल में सर्जरी हुई और ये सफल रही. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

Prakash Kamble भाग्यश्री जाधव की थ्रो बॉल खेलते हुए और शिव छत्रपति पुरस्कार जीतने के दौरान की फोटो भाग्यश्री जाधव के करियर की कैसे शुरुआत हुई?

भाग्यश्री जाधव ने अपने पैरों पर खड़ा होना चाहा और डॉक्टरों से बात की.

डॉक्टरों ने सलाह दी कि वो एक्सर्साइज करें.

होम गार्ड ऑफिसर प्रकाश ने भाग्यश्री के लिए नांदेड में स्थित होम गार्ड विभाग के ट्रेनिंग ग्राउंड का इंतज़ाम करवाया.

प्रकाश के कुछ दोस्तों ने सलाह दी कि वो किसी खेल में करियर बनाने का सोच सकती हैं. काफ़ी विचार के बाद वो पहले जैवलिन और थ्रो बॉल खेल की तरफ़ बढ़ीं.

साल 2017 में पुणे में हुए मेयर कप टूर्नामेंट को देखते हुए भाग्यश्री ने जैवलिन और थ्रो बॉल खेलने पर ध्यान दिया. भाग्यश्री को ट्रेनिंग के लिए एक ख़ास तरह के व्हीलचेयर की ज़रूरत थी. इससे उन्होंने आयरन बॉल और भाला फेंकने का अभ्यास किया.

प्रकाश कांबले ने भाग्यश्री जाधव की ट्रेनिंग देखने के लिए होम गार्ड विभाग से किसी को नियुक्त किया. भाग्यश्री ने अपना खेल नांदेड के भाग्यनगर में स्थित होम गार्ड के स्पोर्ट्स ग्राउंड से शुरू किया.

वह अपने मुंहबोले भाई प्रकाश कांबले की शुक्रगुज़ार रहती हैं और अपनी सफलता में उनकी भूमिका अहम मानती हैं.

2017 में भाग्यश्री ने मेयर कप टूर्नामेंट में जैवलिन में ब्रॉन्ज और थ्रो बॉल में गोल्ड मेडल जीता. यहीं से उनके शानदार करियर की शुरुआत हुई.

FACEBOOK भाग्यश्री जाधव थ्रो बॉल खेलते हुए भाग्यश्री जाधव की सफलता

भाग्यश्री जाधव ने कोल्हापुर में हुई स्टेट लेवल चैंपियनशिप में 2018 में थ्रो बॉल में गोल्ड मेडल जीता. नेशनल लेवल पर उन्होंने ब्रॉन्ज हासिल किया.

ये सब उन्होंने बिना किसी प्रोफेशनल कोचिंग और सुविधाओं के हासिल किया.

भाग्यश्री के सपने इससे बड़े थे और उन्होंने अपने सपने पूरे करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का सोचा लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी.

जब भाग्यश्री का 2019 में हुए चीन पैरालंपिक ओपन चैंपियनशिप में चयन हुआ तो उनकी मां ने अपनी जूलरी बेच दी.

भाग्यश्री ने अपने परिवार का त्याग व्यर्थ नहीं जाने दिया और दो ब्रॉन्ज मेडल जीते. ये उनके करियर के लिए अहम मोड़ था.

उन्होंने एशियाई चैंपियनशिप और पैरालंपिक खेलने का सोचा, लेकिन कोराना महामारी आ गई.

भाग्यश्री को नांदेड वापस आना पड़ा मगर उन्होंने प्रैक्टिस नहीं छोड़ी. इस दौरान उनकी मां ने भी काफ़ी साथ दिया.

भाग्यश्री को प्रैक्टिस में अच्छा थ्रो करने के लिए व्हील चेयर को एक जगह पर मज़बूती से टिकाए रखने की आवश्यकता थी. इसमें उनकी मां पुष्पाबाई मदद करती थीं और वो हर थ्रो के बाद बॉल लेकर आती थीं.

पुष्पाबाई हर प्रैक्टिस सेशन में मौजूद रहीं.

ये सब हो ही रहा था कि भाग्यश्री को 2020 में प्रैक्टिस के दौरान हाथ में चोट लग गई. उन्हें डॉक्टर ने सलाह दी कि वो ना खेलें, लेकिन ये सलाह नहीं मानी और इलाज के दौरान भी प्रैक्टिस करना जारी रखा.

डॉ शुंभागी पटेल ने भाग्यश्री को जिद्दी बताते हुए कहा कि वो जो कुछ ठान लेती हैं तो पीछे नहीं हटतीं. इस दौरान उन्हें कोई नहीं रोक सकता.

Prakash Kambale भाग्यश्री जाधव का जीवन काफी मुश्किलों वाला रहा

भाग्यश्री जाधव को इसी लगन के कारण काफ़ी सफलता मिली.

  • 2021: फ़ज़ा कप में ब्रॉन्ज मेडल
  • 2023: एशियाई पैरा खेलों में ब्रॉन्ज मेडल
  • 2023: पैरा एथलेक्टिस चैंपियनशिप में चौथा स्थान, पेरिस पैरालंपिक के लिए क्वॉलिफाई किया.

पिछले सात सालों में भाग्यश्री एक मशहूर खिलाड़ी बन गई हैं और उन पर सभी की नज़रें हैं.

साल 2016 में बिना ट्रेनिंग के मैदान में उतरीं भाग्यश्री बीते सात सालों में भारत की ओर से दो बार पैरालंपिक तक का सफर तय कर चुकी हैं.

अब नज़र पैरालंपिक मेडल पर है.

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