भारत और चीन के बीच पेट्रोलिंग पर समझौता, संबंधों में पिघलती बर्फ के क्या हैं मायने?

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Getty Images साल 2019 में चीन में ब्रिक्स सम्मेलन आयोजित हुआ था और उस दरम्यान भी विवाद सुलझाने के दावे किए गए थे.

वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर सैनिकों की पेट्रोलिंग को लेकर भारत और चीन एक समझौते पर पहुंच गए हैं.

रूस में 22-23 अक्तूबर को हो रहे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रवानगी से ठीक पहले सोमवार को विदेश मंत्रालय की ओर से ये घोषणा की गई.

भारत चीन के रिश्तों पर नज़र रखने वाले कुछ जानकारों का मानना है कि अतीत में भी चीन के साथ ऐसे समझौते हुए हैं. लेकिन उसके बाद चीन की ओर से आक्रामकता सामने आई है.

हालांकि इस समझौते से जुड़ी विस्तृत जानकारी अभी नहीं दी गई है और चीन का कोई बयान भी नहीं आया है, लेकिन कुछ जानकार इसे संबंधों को सामान्य करने की ओर एक अहम कदम मान रहे हैं.

BBC

सोमवार को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि पिछले कई हफ़्तों से भारत और चीन के बीच राजनयिक और सैन्य स्तर पर हुई वार्ताओं का ये नतीजा है कि 'डिसएंगेजमेंट' पर समझौता हुआ.

भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने भी निजी समाचार चैनल एनडीटीवी के कार्यक्रम में सोमवार को कहा, ''साल 2020 में भारत के सैनिक चीन से लगी सरहद पर जहाँ तक पट्रोलिंग करते थे, वहाँ फिर से कर पाएंगे.''

उन्होंने कहा, ''तनाव कम करने के लिए भारत और चीन के बीच वार्ता पूरी हो चुकी है. आपसी सहमति पर दोनों पक्ष आज ही पहुंचे हैं. और आने वाले समय में और जानकारियां सामने आएंगी.''

हालांकि उनका कहना था, "एलएसी पर 2020 से पहले वाली स्थिति बहाल होगी. यह एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है लेकिन इसके पूरे असर का आकलन करना जल्दबाज़ी होगी. हमें इंतज़ार करना होगा."

समझौते को कैसे देख रहे जानकार
REUTERS/Aly Song चीन की नीतियों पर नज़र रखने वाले कई जानकारों ने समझौते के अमल में आने तक इंतज़ार करने को कहा है.

भारत चीन मामलों के जानकार और कलिंगा इंस्टिट्यूट में इंडो-पैसिफ़िक स्टडीज़ के फ़ाउंडर और चेयरमैन प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्र कहते हैं, '' यह एक अच्छी शुरुआत है क्योंकि पिछले कुछ महीनों में कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर जो वार्ताएं हुई हैं, उसका ही नतीजा है कि तनाव कम करने पर एक समझौते की बात सामने आई है.''

''लेकिन सिर्फ एक समझौते से दोनों देशों के बीच सारे तनाव काफूर हो जाएंगे ऐसा तो नहीं है. मगर रिश्तों के सामान्य होने की प्रक्रिया में यह एक पहला कदम माना जा सकता है.''

उन्होंने कहा, ''अभी समझौता ‘डिसएंगेजमेंट’ का हुआ है. इसका मतलब है कि कुछ इलाक़े में ये हो चुका है और कुछ इलाक़ों में ये होना है. पिछले महीने ही भारतीय सेना अध्यक्ष ने भी कहा था कि आसान मुद्दों को हल कर लिया गया है और अब आने वाले समय में कठिन समस्याओं के समाधान होने की संभावना है.''

कुछ जानकार इस घोषणा को सावधानी से देखने की सलाह दे रहे हैं.

ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट में सीनियर फ़ेलो तनवी मदान ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर , '' 2017 में डोकलाम संकट भी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले हल हो गया था और इसने पीएम मोदी के चीन दौरे का रास्ता बनाया था.उस समय भी चीन कुछ भूराजनीतिक समस्याओं का सामना कर रहा था.''

तक्षशिला इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर नितिन पाई ने एक्स पर , ''भारत चीन सीमा पर शांति लाने के लिए कुछ समझौता हुआ है. लेकिन अभी से जश्न न मनाएं. क्योंकि बीजिंग की नीतियों में ऐसा कुछ नहीं दिखता जिससे पता चले कि उसके आक्रामक रुख़ में बदलाव आ गया है.''

विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने सोमवार को जो बयान दिया उसमें सिर्फ इतना ही कहा है कि डिसएंगेजमेंट पर समझौता हुआ है.

उसमें ये साफ़ नहीं है कि विवाद के बाकी बिंदुओं पर इस समझौते का क्या असर पड़ेगा.

हालांकि विदेश मंत्री जयशंकर ने देपसांग का ज़िक्र करते हुए कहा कि अन्य इलाक़ों में भी पेट्रोलिंग होगी.

प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्र का कहना है कि ऐसा लगता है कि जो ताज़ा एलान हुआ है उसमें कई मुद्दों पर सहमति बनी है.

उनके अनुसार, '' यह भारत चीन के साथ प्रशांत क्षेत्र के लिए भी बहुत अच्छी ख़बर है.''

समझौते की टाइमिंग Getty Images अगस्त 2023 में दक्षिण अफ़्रीका के जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच मुलाक़ात हुई थी.

पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच, पिछली बार अगस्त 2023 में दक्षिण अफ़्रीका के जोहानिसबर्ग में हुई ब्रिक्स की बैठक के दौरान बातचीत हुई थी.

उस दौरान कहा गया था कि दोनों देश आपसी संबंधों को बेहतर करना चाहते हैं.

दोनों देशों के बीच 3,488 किलोमीटर की साझा सीमा है और वहां सैनिकों को हटाना और तनाव कम करना दोनों के हित में है.

इससे पहले 2022 में भी में दोनों नेता पहुंचे थे लेकिन उनके बीच द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई थी.

हाल के महीनों में विश्व भू राजनीति में काफ़ी परिवर्तन हुआ है. चीन और पश्चिमी देशों के बीच संबंध उतने सहज नहीं रहे हैं.

शिव नादर यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और चीनी मामलों के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर जबिन टी जैकब ने बीबीसी हिंदी से कहा, ''भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की पहल के पीछे कुछ हद तक चीन की परिस्थितियां भी ज़िम्मेदार हैं. चीन का अमेरिका के साथ संबंध बहुत ख़राब दौर में है और अगले महीने अमेरिका में चुनाव भी हैं.''

वो कहते हैं, '' चीन ये मान चुका है कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति चाहे जो हो जाए उसके साथ रिश्तों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. यूक्रेन जंग के दौरान रूस के साथ असीमित सहयोग के समझौते से भी चीन और पश्चिमी देशों में टकराव बढ़ा है.''

उन्होंने कहा,'' चीन इस समय अंतरारष्ट्रीय स्तर पर मुश्किल में है और घरेलू स्तर पर भी उसकी आर्थिक प्रगति धीमी हुई है. ऐसे में चीन को अपनी विदेश नीति में थोड़ी बहुत फेरबदल करने की फौरी ज़रूरत भी है और थोड़ा लचीला रुख़ दिखाना भी ज़रूरी है.''

प्रोफ़ेसर जैकब के मुताबिक, “ऐसा नहीं है कि ये घोषणा अचानक हुई है, इसके पहले वार्ताओं के कई दौर हो चुके हैं. इसकी घोषणा के लिए ब्रिक्स सम्मेलन के मौके को चुना गया.''

उन्होंने कहा,'' देखना है कि चीन इस समझौते को निभाता है या नहीं क्योंकि पहले भी ऐसे कई समझौते हुए हैं और चीन ने उन्हें तोड़ा है.''

व्यापार पर क्या होगा असर? AFP दोनों देशों के बीच लगातार पिछले दो सालों से 136 अरब डॉलर का व्यापार हो रहा है.

पूर्वी लद्दाख के गलवान में 2020 में हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 सैनिक मारे गए थे और चीन के भी कई सैनिकों की मौत हुई थी.

हालांकि इसका असर दोनों देशों के व्यापार पर नहीं पड़ा. दोनों देशों के बीच 2022 में 135.98 अरब डॉलर के मुकाबले 2023 में 136 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था.

प्रोफ़ेसर जैकब के अनुसार,''संबंध सुधरने का असर व्यापार भी पड़ेगा. चीनी निवेश को लेकर भारत थोड़ा लचीलापन दिखा सकता है. अभी चीन की इलेक्ट्रिक गाड़ियों को लेकर पश्चिमी देशों में काफ़ी विरोध की स्थिति है.”

वो कहते हैं, '' भारत को जैसी उम्मीद थी पश्चिम से निवेश नहीं आ रहा है बल्कि चीन से निवेश आ रहा है. उदाहरण के लिए इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी या रेयर अर्थ मटीरियल. भारत को जो ज़रूरी आयात हैं वो चीन से ही आएगा, पश्चिम से नहीं.”

प्रोफ़ेसर जैकब कहते हैं कि इसका ये भी मतलब नहीं है कि पश्चिम के साथ भारत के संबंधों में कोई बदलाव आया है. भारत अपने हित के अनुरूप अपनी नीतियों का निर्धारण कर रहा है.

समझौते में क्या है? Getty Images भारत चीन के बीच तनाव कम करने के लिए विश्वास बहाली के कई उपाय किए जाने पर सहमति बनी है.

भारत की ओर से की गई घोषणा में समझौते के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है लेकिन 'द प्रिंट' ने समझौते के कुछ अहम बिंदुओं पर रोशनी डाली है.

द प्रिंट की के अनुसार, ''रक्षा सूत्रों ने बताया कि सर्दियों में वैसे भी एलएसी पर पेट्रोलिंग रोक दी जाती है. इस दौरान सैनिकों की संख्या कम कर दी जाएगी, जैसा कि पिछले चार सालों से होता आ रहा है.''

''समझौते के मुताबिक़, उन सभी इलाक़ों में पेट्रोलिंग होगी, जहां 2020 से पहले होती थी. इसमें देपसांग के अलावा पीपी10 से पीपी13 तक का इलाक़ा शामिल है. ये भी पता चला है कि महीने में दो बार पेट्रोलिंग होगी और झड़प से बचने के लिए सैनिकों की संख्या 15 तक सीमित कर दी गई है.''

''पेट्रोलिंग शुरू करने से पहले एक दूसरे को जानकारी देने पर भी दोनों पक्षों में सहमति बनी है. इस दौरान विश्वास बहाली के उपाय किए जाएंगे और हर महीने एक बार कमांडिंग अफ़सरों के स्तर पर वार्ता होगी.''

'द प्रिंट' के अनुसार, ''देपसांग मैदान से जुड़े मुख्य मुद्दे को हल कर लिया गया है. चीनी सैनिक पहले की स्थिति में लौट जाएंगे और ‘Y’ जंक्शन पर भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग से नहीं रोकेंगे.''

''उन इलाकों में जहां डिसएंगेजमेंट पूरा हो गया है- पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे, गलवान, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा- वहां दोनों पक्ष फिर से पेट्रोलिंग करना शुरू करेंगे.''

भारत की ओर से तनाव कम किए जाने को लेकर समझौते का बयान, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस रवाना होने से पहले आया है.

रूस के कज़ान में 22-23 अक्तूबर को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन हो रहा है, जहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी मौजूद होंगे और संभावना है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी मुलाक़ात की भी संभावना है.

चिंतामणि कहते हैं, '' समझौते की इस घोषणा से दोनों नेताओं के बीच मुलाक़ात का होना स्वाभाविक लगने लगा है और ऐसा हो सकता है. ये नहीं कहा जा सकता है ब्रिक्स की वजह से समझौते की घोषणा हुई, बल्कि यह एक संयोग है.''

वो कहते हैं,''जहां तक ब्रिक्स की बात है, यह एक ऐसा संगठन है जिसका अभी विस्तार हो रहा है. भारत और चीन इसके अहम सदस्य हैं और दोनों के बीच किसी प्रकार का तनाव कम होना ब्रिक्स के लिए भी अच्छी ख़बर है और ब्रिक्स को आगे बढ़ाने में भी इससे काफ़ी मदद मिलेगी.''

उनके अनुसार, ''ब्रिक्स को आगे बढ़ना है तो इसके प्रमुख सदस्यों के बीच बेहतर तालमेल जरूरी होगा.''

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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