सर्वाइकल कैंसर के मरीज़ों के लिए वरदान साबित हो सकता है ये नया ब्लड टेस्ट

Hero Image
Getty Images 2022 में सर्वाइकल कैंसर के मरीज़ों के मामले में भारत दुनियाभर में दूसरे नंबर पर था

दिल्ली के ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों ने सर्वाइकल कैंसर के मरीजों के लिए ऐसा ब्लड टेस्ट तैयार किया है जिससे ये पता चल सके कि उनके इलाज का असर हो रहा है या नहीं.

ये टेस्ट उस महंगे और पारंपरिक पीड़ादायक टिश्यू बायोप्सी की जगह ले सकता है, जो फिलहाल सर्वाइकल कैंसर से जुड़े मामलों की मॉनिटरिंग में इस्तेमाल हो रहा है.

एम्स के डॉक्टरों ने अपने रिसर्च पेपर में लिखा है कि इस टेस्ट में ब्लड सैंपल के जरिये ट्यूमर की कोशिकाओं का विश्लेषण किया जाता है. ये एक ऐसी प्रक्रिया है जो इस बीमारी की शुरुआत में ही पता लगाने में मददगार है.

रिसर्च के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजों को नेचर ग्रुप के जर्नल 'साइंटिफ़िक रिसर्च' में प्रकाशित किया गया है.

BBC

सर्वाइकल कैंसर सर्विक्स में होता है जो यूटेरस (गर्भाशय) को वेजाइना से जोड़ता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़ यह महिलाओं में होने वाला चौथा सबसे आम कैंसर है.

भारत में ये महिलाओं को होने वाला दूसरा सबसे सामान्य कैंसर है. 2022 में सर्वाइकल कैंसर के मरीजों के मामले में भारत दुनिया भर में दूसरे नंबर पर था.

भले ही सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम वैक्सीन से हो सकती है लेकिन ये भारत महिलाओं में मौत की बड़ी वजह है. हर आठ मिनट में एक महिला की मौत से होती है.

डॉ. मयंक सिंह इसकी वजह समझाते हुए कहते हैं, '' भारत में सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन अभी भी काफी कम महिलाओं को लगाई गई है. यही वजह है कि भारत सर्वाइकल कैंसर और इससे होने वाली मृत्यु दर में सबसे आगे है.''

डॉ. सिंह कहते हैं, ''चूंकि भारत में सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीनेशन दर कम है इसलिए मरीजों में शुरुआती चरण में इसका पता लगना बेहद अहम है. क्योंकि भारत में इस बीमारी के ज्यादातर मरीज इलाज के लिए तब पहुंचते हैं जब ये एडवांस स्टेज में पहुंच जाती है.''

नए टेस्ट में क्या अहम है? Getty Images

इस रिसर्च का अहम निष्कर्ष सर्वाइकल कैंसर के मरीजों में ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) के डीएनए लेवल से जुड़ा है. एचपीवी एक ऐसा वायरस है जो बीमारी के सभी केसों की वजह बनता है.

इस रिसर्च स्टडी में एम्स के डॉक्टरों ने सर्वाइकल कैंसर के 60 ऐसी मरीजों का ब्लड सैंपल लिया था जिन्हें अपना इलाज अभी शुरू ही करवाना था. इसके साथ ही ऐसी दस स्वस्थ महिलाओं का भी ब्लड सैंपल लिया गया था जिन्होंने कंट्रोल ग्रुप बनाया था.

स्टडी से पता चला कि इलाज के तीन महीनों के बाद कैंसर मरीजों में वायरल डीएनए का सघनता स्तर घट कर लगभग उस स्तर पर आ गया था जो स्वस्थ महिलाओं का था.

डॉ. सिंह कहते हैं, ''इस स्टडी के नतीजे इसलिए अहम हैं क्योंकि सर्वाइकल कैंसर में ऐसा कोई खास एंटीजेन मार्कर नहीं होता है जो ये बता सके कि इलाज कारगर हो रहा है या नहीं. ट्यूमर में सुधार हो रहा है या नहीं.''

वो कहते हैं, '' इसलिए हर बार मरीज को पारंपरिक बायोप्सी से गुजरना पड़ता है और इसके लिए उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. आपको ट्यूमर का सैंपल लेकर इसकी जांच करनी पड़ती है. इस तरह की पारंपरिक बायोप्सी में समय लगता है. ये महंगा है और इससे मरीज को काफी दर्द होता है.''

उन्होंने बताया कि नए तरीके को 'लिक्विड बायोप्सी' का नाम दिया गया है और इसकी लागत लगभग 2500 रुपये आएगी. इसमें पारंपरिक बायोप्सी से कम दर्द सहना पड़ेगा क्योंकि इसमें मरीज का सिर्फ 5 मिली. खून लिया जाएगा.

इस स्टडी में शामिल डॉक्टरों कहना है कि सर्वाइकल कैंसर की मॉनिटरिंग में ब्लड टेस्ट व्यापक कदम साबित हो सकता है. हालांकि डॉ. सिंह ये मानते हैं कि इस तरह जांच के लिए डायगोनोस्टिक सुविधाओं की जरूरत होती है जो भारत के ग्रामीण इलाकों के हेल्थ सेंटरों में उपलब्ध नहीं होते हैं.

वो कहते हैं, ''हालांकि एक बार जब किसी टेक्नोलॉजी का प्रसार हो जाता है तो उस तक पहुंच आसान हो जाती है.

BBC

एम्स के डॉक्टर इस रिसर्च के अगले चरण में टेस्ट को और सटीक बनाने की कोशिश करेंगे. ये सर्वाइकल कैंसर की वजह बनने वाले वायरस के अलावा दूसरे म्यूटेशन शामिल करके ऐसा करेंगे.

डॉ. सिंह ने बीबीसी को बताया कि एम्स में इस ब्लड टेस्ट को शुरू करने से पहले मरीजों के एक और समूह पर क्लीनिकल टेस्ट की जरूरत पड़ेगी.

उन्होंने कहा, ''दुनिया भर में सर्वाइकल कैंसर से जुड़ी तीन और अलग-अलग स्टडी प्रकाशित हुई हैं. उनमें भी ऐसे रिज़ल्ट दिखे हैं. इसलिए इस टेस्ट में संभावना नज़र आ रही है.'

सर्वाइकल कैंसर क्यों होता है और इसका इलाज क्या है Getty Images

डब्ल्यूएचओ को मुताबिक़ 99 फ़ीसदी सर्वाइकल कैंसर के मामले एचपीवी वायरस से जुड़े होते हैं जो यौन संपर्क से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. भले ही एचपीवी से बहुत ज्यादा संक्रमण से कोई लक्षण न दिखे लेकिन बार-बार कोई इस वायरस से संक्रमित होता है तो बाद में जाकर ये सर्वाइकल कैंसर का रूप ले लेता है.''

कई अध्ययनों में से ये पता चला है कि एचपीवी वैक्सीन वायरस से होने वाले संक्रमण को दस साल तक रोक सकती है. हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं ये बचाव लंबे समय तक भी रहता है.

बच्चों को ये वैक्सीन उनके यौन सक्रिय होने से पहले लगाने की जरूरत होती है. क्योंकि वैक्सीन सिर्फ संक्रमण को रोक सकती है. ये वायरस से छुटकारा नहीं दिलाती.

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़ भले ही एचपीवी संक्रमण सर्वाइकल कैंसर में बदल जाता है लेकिन अभी भी ये इस बीमारी का ऐसा रूप है जिसका इलाज सबसे ज्यादा संभव है. बाद के स्टेज में भी कैंसर का पता चलने के बाद भी इसे उचित इलाज और देखभाल से नियंत्रित किया जा सकता है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इसे यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करने पर काम कर रहा है. इस कार्यक्रम के तहत मुफ़्त टीकाकरण होता है.

सितंबर 2022 में भारत सरकार ने देश में ही विकसित पहली एचपीवी वैक्सीन सर्वावैक लॉन्च की थी.

इसके बाद उसी साल केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को लिखा कि वो 9 से 14 साल की उम्र की लड़कियों को स्कूलों और हेल्थकेयर सेंटरों के जरिये इसका टीका लगवाएं.

डॉक्टर 9 से 14 साल के लड़कों को भी एचपीवी से बचाव का टीका लगाने पर जोर देते हैं ताकि इस वायरस से जुड़े कैंसर को फैलने से रोका जा सके.